पियाजे के आनुसार विकास की अवस्थाएँ :
पियाजे मानते है कि बच्चों की र्तक्शकित आरभिक अस्थाओ मे बाद की अवस्थोओ से गुणात्मक रुप से भिनन् होती है ! विकास की किसी अवस्था मे एक मोड़ पर कई समस्याओ को लेकर बच्चो का दृष्टिकोण एक समान होता है। एक अवस्था में लम्बा समय बिता लैने क बाद बच्चे अनायास अगली अवस्था मे प्रवेश कर जाते है । इन चरणों का स्वरूप संसार के बच्चों के एक सा होता है और इन चरणों का क्रम भी बदला नही जा सकता । पियाजे के अवस्था सिद्रातं की अभिधारणा के अनुसार प्रत्येक बच्चा विकास की चार अवस्याओ में गुजरता है।
अलग- अलग चरण मे बच्चो की सोच
विकास का चरण स्नायु पेशीय अवस्था जन्म - 2 साल
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उम्र जन्म 1 महीना
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विशेषताएँ
सहज क्रियाओ का परिष्कार (संशोधन ) मूल क्रियाएँ
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1- 4
महीने |
प्राथमिक वृत्ताकार प्रतिक्रियाए
आरमिभक सहज क्रियाओं से अधिक बहिर्भखी
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4-8 महीने
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दूसरी गोलाकार प्रतिक्रियाएँ
शिशू अपने शरीर की सीमा से बाहर होने वाले परिणामो मे भी रूचि लेता है।
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8-12 महीने
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दूसरी प्रतिक्रियाअो में समन्वय
बच्चा चीजो को वहाँ खोजता है जहाँ वो पहले पाए गए थे न कि जहाँ वो अंत में छुपाए गए
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12-18 महीने
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तीसरी गोलाकर प्रतिक्रियाएँ
शिशु वस्तुओ के सम्पर्क मे आने के लिए नए नए तरीके सक्रियरूप से खोजने लगते हैं और वस्तुओ के सम्भव प्रयोग ढूँढ निकालते है ।
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18 - 24 महीने
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प्रतीकात्मक प्रतिरूप का विकास
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2- 4 साल
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प्रतिनिधि विचारो का आरम्भ
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2 - 7 साल
पूर्व संक्रियात्मक अस्था
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4- 7 साल
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विकास का चरण मूर्त -संक्रियात्मक अवस्था
7 - 12
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7 - 12
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एक ही समय में एक से अधिक परिप्रेक्ष्यो को ध्यान मे रखते है ! परिवर्तनशील और स्थायी , दोनो प्रकार की स्थितियोि से को ग्रहण कर सकते है। इससे उन्हे ठोस वस्तुओ और भौतिक सम्भव स्थितियों से उत्पन्न होने वाली समस्याओ को सुलझने में सहायता मिलती है। यधापि वे र्तकसंगत, सम्भव परिणामो को ध्यान में रखते और अमूर्त संकल्पनाओ को नही समझ पाते है।
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12 साल उम्र भर
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12 साल उम्र भर
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पियाजे: संज्ञानात्म विकास
पियाजे को रूचि बच्चे की सोच के कथ्य ( contents ) समझने से ज्यादा उसके अन्तानीहत संगठन में थी। उनके अनुसार बच्चो की सोच बड़ो की सोच से गुणातमक रूप से भिन्न होती है। उन्होने बुद्धि की परिकमाणत्म परिभाषा , जोकि सही उत्तरो की गिनती पर र्निभार करती थी, को नकार दिया । पियाजे के अनुसार हमारा कार्य उन विभिन्न तरीकों की खोज करने का है, जिनका उनके उम्र के बच्चे अपनी सोच के लिए इस्तेमाल करते हैं। पियाजे के लिए मुददा ये नहीं था कि एक बच्चा 18 महीने मे और दूसरा 22 महीने में बोलना कयों शुरू करता है वरन् मुददा ये था कि दोनो बच्चों के लिए शब्द क्या मायने रखते हैं। पियाजे के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संरचानाएँ वंशानुगत रूप से मिलती हैं, जो उसके बौद्धिक प्रकायों को विस्तृत सीमा में बांधती है। इनमें से कोई भैतिक परिपक्वता से प्रभावित होती है। व्यक्ति कई reflexes भी क्शानुगात रूप से प्राप्त करता है जो अनुभवों के द्वारा तेजी से सरंचनाओ में परिवर्तित होते है ।
पियाजे और शिक्षा
पियाजे के सिद्धान्त के अनुसार विकासात्मक परिर्वतन का मूल सतुलन है। पियाजे के विकास को बच्चे की ज्ञानातमक व्यवस्था और बाहरी दुनिया के बीच बनते अधि - स्थायी संतुलन के रूप में देखा । सतुलन का सम्बन्ध चिन्तन (सोचा ) के मौजूदा तरीको और नए अनुभवों के बीच प्रतिक्रियाओं से है। संतुलन तीन अवस्थाओं में होता है। पहला, जब बच्चे अपने सोचने के तरीके से संतुष्ट होते है, तो वे संतुलन मे रहते है। जब वे अपने चिन्तन की कमियाँ जान जाते है तो असंतुष्ट हो उठते है। इसी से आरम्भ होता है असंतुलन । फिर वे आने चिन्तन मे अत्याधुतिक तरीके से परिवर्तंन लाकर पुरानी कमियो को दूर कर देते हैं तब वे स्थायी संतुलन की स्थिति में पहुँच जाते हैं। संतुलन के घेरे में समीकरण और अनुकूलन देनों आ जाते है। समावेश का अर्थ उस तरीके से है जिसके द्वारा लोग प्राप्त सूचना को अपने चिन्तन में मिला लेते हैं। अनुकूलन का तात्पर्य उन तरीकों से है जिनमें लोग नए अनुभवा के आधार पर अपने चिन्तन को रूपान्तरित कर लेते हैं।
"शिक्षा का मकसद ऐसे व्यक्तियो का बनाना है जो नई क्रियाएँ करने सक्षम हो जो सृजनशील व खोजी प्रवृति के हों । शिक्षा का दूसरा मकसद ऐसे मीस्तष्का का विकास है जो समीक्षा करने में सक्षम हो, जो चीजो को सिद्ध करे न कि उन्हे ज्यो का त्यों मान ले। ( पियाजे Development and learning 1964 )
हालांकि पियाजे ने रूकूली शिक्षा के बारे में सीधे बात नही की परन्तु उनकी थ्योरी से हम कई सिद्धान्त निकाल सकते हैं।
बच्चे की सोच एवं भाषा बड़ो से अलग होती है। शिक्षक को इस बात ध्यान रखाना चाहिए व प्रत्येक बच्चे का व्याकतगति तौर पर अवलोकन करना चाहिए - उनका अपना परिप्रेक्ष्य समझने के लिए । बच्चे चीजो के साथ अन्तः क्रिया कर के सीखते हैं। शिक्षिका द्वारा दिए गए मैखिक निदेश _ प्रायः अपर्याप्त रहते है । खासतौर पर छोटे बच्चो के लिए । सीखने के तरीके - बच्चों की उम्र को ध्यान मे रखते हुए ।
ज्ञानात्मक क्रियाओ से विकास होता है। समीकरण, समझोता और संतुलन से सब साक्रिय प्राक्रियायें है, जिनके द्वारा मस्तिष्क में परिवर्तन होते रहते है, जिनका आधार प्राप्त होने वाली जानकारी है । बच्चा सक्रिय होता है व केवल जानकारी देने से नही सीखता है। पियाजे ने बच्चों को वैज्ञानिक की तरह देखा हैै जो खोज विधि से सीखता है ।
बच्चे तब रूचि दिखाते है व सीखते है जब कोई नया अनुभव हो । अनुभव थोडा नाया होना आवश्यक है ताकि बच्चा समीकरण व अनुकूलन कर सके । बच्चो की संज्ञानात्मक संसचनाएँ अलग होती है इसलिए जरूरी नही है कि सभी बच्चो को कोई अनुभव एक जितना ही रूचिपूर्ण लगे या फिर सभी उस अनुभव से समान रूप से सीख पाएँ । इसलिए सामूहिक निर्देश देना असंभव हैं। जरूरी है। कि बच्चे अपने द्वारा चुने गए कार्य पर व्यकितगत रूप से कार्य करें कक्षा में इसका प्रावधान व अन्य सामान का प्रावधान होना आवश्यक है। कक्षा का वातावरण बच्चे के घर के वातावरण से जुड़ा होना चाहिए । दोनो मे एक संबन्ध होना चाहिए ।
स्कूल में आने से पहले भी बच्चा कई चीजें सीख कर आता हैं। इस प्रकार से देखें तो बच्चे का सीखना आत्मा नियमित होता है। कक्षा मे बच्चो को एक दूसरे से बात च्चीत करने का एवं र्तक करने का भी अवसर प्रादान करना चाहिए । इस तरह की सामाजिक अन्तक्रिय, विशेषरूप से जब वह उपयुक्त भौतिक अनुभवो पर केन्द्रित हो, बौद्धिक विकास को बढ़ावा देती है । इसके अलावा पियाजे की थोयरी का इस्तेमाल पाठ्यक्रम बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
आवश्यक पढ़ें - कोलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धान्त
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