शिक्षा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पिछड़े बालकों की कुछ विशेष समस्याएँ होती है जो निम्नलिखित हैं।
1)पिछड़े बालक अधिकांशत: शारीरिक दृषिट से सामान्य बालकों से समान लगते हैं। अत: अभिभावक और अध्यापक उनसे वही उम्मीद रखते है जैसी वे सामान्य बालकों से रखते है।
2)बालक जब उन उम्मीदों पर पूरा नहीं उतर पाते हैं उन्हें अभिभावकों और अध्यापको की तरफ से डाँट, पफटकार और सजा मिलती है। जिससे ऐसे बालकों की मनोवृत्ति स्कूल एवं शिक्षकों के प्रति नकारात्मक हो जाती है।
3)सहपाठी कक्षा में उनका मजाक उड़ाते है। इसका परिणाम यह होता है कि इन बालकों में संवेगात्मक समस्याएँ और व्यवहार सम्बन्ध्ी समस्याएँ पैदा हो जाती है।
4)इस कारण से बालकों की मूल आवश्यकताएँ जैसे प्यार, सामाजिक स्वीकृति, पहचान आदि पूरी नहीं हो पाती। इसका परिणाम यह होता है जो इनकी पढ़ने लिखने और सीखने की प्रेरणा को बहुत ही कम कर देती है।
5)ऐसे बालकों को चूंकि लगातार असपफलता ही असपफलता मिलती है, अत: इनमें आत्मविश्वास, मनोबल एवं आत्मनिर्भरता जैसा केार्इ गुण नहीं विकसित हो पाता है। फलस्वरूप ऐसे बालकों में सीखने की अभिरूचि लगभग समाप्त हो जाती है।
6)इस कारण से बालक अधिक चिनितत और तनावग्रस्त रहते हैं। वे समझ नहीं पाते हैं कि उन्होंने क्या गलत कर दिया है। इसी तनाव और चिंता का असर उनकी शैक्षिक उपलबिध्यों पड़ता है।
7)पिछड़े बालकों की एक अन्य बड़ी समस्या कक्षा में समायोजन की होती है। ऐसे बालकों को कक्षा का पाठयक्रम बहुत कठिन लगता है। उनका इस पाठयक्रम को समझने में कठिनार्इ आती है और परिणामस्वरूप वे अन्य सहपाठियों की तुलना में पीछे रह जाते है।
0 comments:
Post a Comment