पिछड़े बालकों की विशेषताएँ ( slow-learner-importants )





विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए बालकों को निम्न प्रकार परिभाषित किया है।


सिरिक बर्ट: के अनुसार 'पिछड़ा बालक वह है जो अपने विधालयी जीवन के मध्य में अर्थात लगभग 10 1/2  वर्ष की उम्र में अपनी कक्षा से नीचे का कार्य न कर सके, जो उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य का है।

शौनेल: के अनुसार 'पिछड़ा हुआ विधार्थी वह है जो अपनी आयु के अन्य विधार्थियों की तुलना में अत्याधिक शैक्षणिक दुर्बलता को प्रदर्शित करें।

टी.के.ए. मेनन: के अनुसार:- 'भारतीय सिथति में पिछड़ा बालक वह है जो अपनी कक्षा की औसत आयु से एक से अधिक वर्ष बड़े हों।


उपरोक्त परिभाषाओं के आधर पर हम ये कह सकते हैं कि पिछड़े बालकों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है:-

1)पिछड़े बालक जीवन में निराशा का अनुभव करते है।
2)पिछड़े बालक की ध्यान केनिद्रत करने की क्षमता कम होती है और वे एक विषय पर ज्यादा देर तक
केनिद्रत नहीं रख पाते।
3)पिछड़े बालक का व्यवहार असमायोजित है। वह समाज से पृथक रहना चाहता है।
4)पिछड़े बालक सामान्य शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विपफल रहते है।
5)पिछड़े बालक अपनी और अपने से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
6)पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने समकक्ष छात्राों से कम होती है।
7)उनमें प्राय: मौलिकता का अभाव होता है और वे नवीन समस्या पर विचार नहीं कर सकते है।
8)पिछड़े बालक की सीखने की गति धीमी होती है। वे सीख कर जल्दी भूल जाते हैं।
9)पिछड़े बालक की शैक्षिक उपलबिध् सामान्य या औसत से कम होती है।

अवश्य पढ़े:


Share:

0 comments:

Post a Comment

loading...

Popular Posts

Live Online Visitors

FIND US ON FACEBOOK

Powered by Blogger.